दो बहनें
पति के जीवन-लोक में ऐसा कोई सीमान्त प्रदेश नहीं जहाँ उसके साम्राज्य का प्रभाव शिथिल हो। स्त्री के अति लालन की छाया में पति का मन भुलक्कड़ बन गया है। यदि किसी मामूली पलखत में फ़ाउन्टेन पेन मेज़ के किसी ऐसे हिस्से में पल भर के लिये ग़ायब हो गया, जो ज़रा कठिनाई से दिखाई देता है, तो इसके पुनराविष्कार का भार स्त्री पर है। स्नान करते समय कलाई की घड़ी कहाँ रख दी, शशांक को यह बात एकाएक याद नहीं आती, लेकिन स्त्री की नज़र ज़रूर उसपर पड़ती है। विभिन्न रंग के दो जोड़े मोज़ों में से एक-एक को पहनकर जब वह बाहर जाने के लिये तैयार होता है, उस समय स्त्री ही आकर उसकी ग़लती सुधार देती है। शशांक देसी महीने के साथ अंगरेज़ी तारीख जोड़कर जब मित्रों को निमंत्रण देता है और अप्रत्याशित अतिथियों का दल आ उपस्थित होता है तो उसे सँभालने की आकस्मिक जिम्मेदारी स्त्री की होती है। शशांक निश्चित रूप से जानता है कि दिनचर्या में कहीं कोई ग़लती रहेगी तो स्त्री के हाथों उसका सुधार अवश्य हो ही जायगा।इसीलिये ग़लती करना उसका स्वभाव बन गया है। स्त्री सस्नेह तिरस्कार के साथ कहती, 'अब मुझसे नहीं होता, तुम क्या कभी कुछ नहीं खीखोगे!' लेकिन यदि वह सीख ही जाता तो शर्मिला के दिन ग़ैरआबाद ज़मीन की तरह अनुर्वर हो जाते।